Poem by Rakhi Vaish

छाया शर्मा का था इक सपना
सब बच्चों को साक्षर करना
ईश्वर के आशीर्वाद से
और किशन जी के साथ से
बस तीन चार बच्चों को अपने
घर पर बुलाकर पढ़ाने से शुरू किया
इस पहल को ऊषाकिरन नाम दिया |

फिर ये सिलसिला बढ़ता ही गया
पहले घर का ड्रॉइंग रूम फिर स्टडी रूम
कुछ समय बाद यह भी कम पड़ने लगा
फिर बेस्मेंट में एक कमरा ख़रीदा गया
उस कमरे को बड़े प्यार से संवारा गया
और एक सुंदर सा स्कूल बनाया गया |

सिलसिला बस यहीं नहीं रुका
सबके सहयोग से एक भवन को
स्कूल बनाने के लिए किराए पर लिया गया
इस जगह को पाकर बच्चों का
आत्मविश्वास भी बढ़ता गया
लॉकडाउन की स्तिथि में भी
पढ़ाई कराने का प्रयास जारी रहा |

कुछ भी अच्छा करने के लिए
बस एक शुरुआत करनी होती है
बाक़ी जो सोचा जाता है
धीरे धीरे सच हो जाता है
बच्चों के साथ साथ वोलनटियरस
की संख्या भी बढ़ती गई
सभी लोगों ने अलग अलग ढंग से
मदद करने की कोशिश की
धीरे धीरे एक टीम बनती गई
ऊषाकिरण को एक नई उड़ान मिलती गई |

इन बच्चों को पढ़ाई के साथ साथ
कमाई के साधन भी सिखाए गए
और इनके सर्वांगीण विकास के लिए
हर सम्भव साधन जुटाए गए
खान पान से लेकर मूलभूत आवश्यकताओं
की भी भरपाई करने का प्रयास किया जाता है
इन बच्चों को स्वाबलंबी बनाने के लिए
ऊषाकिरन द्वारा पूरा सहयोग दिया जाता है |

लेकिन परिस्थितियों को देखते हुए
और अधिक बच्चों को यह सुविधाएँ देने के लिए
ऊषाकिरन को स्थाई विद्यालय की आवश्यकता है
यह सपना भी हक़ीक़त में जल्दी ही सच होगा
समाज के इस वर्ग का भविष्य भी उज्ज्वल होगा |

ईश्वर से ये विनती है राखी की
ऊषाकिरन से जुड़े हुए सभी लोगों की
झोली ख़ुशियों से भरी रहें
और वे लोग तन मन धन से
इस नेक कार्य में लगे रहें ||

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